महादेव के जयकारे के साथ विशेष पंचक्रोशी परिक्रमा शुरू होने जा रही है, हजारों श्रद्धालु के साथ शुरू होगी पंचकोशी यात्रा
यूपी।वाराणसी
इस महाशिवरात्रि के पावन मौके पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं काशी नगरी की पंचकोशी परिक्रमा और उसके महत्व के बारे में यहां धर्म संस्कृति से जुड़े अनेकों कालखंड का समायोजन है।
मणिकर्णिका घाट पर पंचकोशी यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं के हुजूम के कारण हर-हर महादेव, बोल बम और जय शंकर का घोष हर ओर गुंजायमान रहता है। इस यात्रा के दौरान बीच में पड़ने वाले पांच पड़ावों पर ही विश्राम की परंपरा है। इन पांच पड़ावों की परंपरागत विश्राम के साथ यात्रा पूर्ण होती है।
विशेष पंचक्रोशी परिक्रमा करने के लिए हजारों की जनसंख्या में श्रद्धालुओं का हुजूम सोमवार शाम से ही मणिकर्णिका घाट पर उमड़ने लगता है। घाट पर स्थित चक्रपुष्कर्णी कुंड और गंगा में स्नान कर हजारों श्रद्धालुओ का हुजूम संकल्प लेने के साथ ही काशी पंचक्रोशी यात्रा पर शाम ढ़लते ही निकल पड़ता है। इसी के साथ काशी के चारो ओर स्थित पंचकोशी परिक्रमा मार्ग पर हर हर महादेव के जयघोष गूंज रहे होते हैं।
पंचकोशी परिक्रमा
काशी में महाशिवरात्रि का पर्व विशेष और काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां कई दिनों पहले से ही इसका आयोजन शुरू हो जाता है। विभिन्न तैयारियों के साथ पंचकोशी यात्रा का भी विशेष स्थान है। हजारों की संख्या में उत्साह और भक्ति से लबरेज होकर इसमें बेहद भक्तिपूर्ण किंतु अनुशासित रूप से भाग लेते हैं। सोमवार से ही मणिकर्णिका घाट पर भोलेनाथ के नारों से पूरी काशी का माहौल शिवमय हो जाता है। इस यात्रा के दौरान बीच में पड़ने वाले पांच पड़ावों पर ही विश्राम की परंपरा है। इन पांच पड़ावों की परंपरागत विश्राम के साथ यात्रा पूर्ण होती है। पंचकोशी परिक्रमा करने वाले परंपरानुसार इन पड़ावों पर विश्राम कर आगे बढ़ते हैं।

काशी पंचकोशी परिक्रमा की क्या है मान्यता?
ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम ने पत्नी सीता और भाइयों के साथ अपने पिता दशरथ को श्रवण कुमार के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए पहली बार यह पवित्र परिक्रमा की थी। दूसरी बार जब भगवान राम ने रावण का संहार किया तब ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए सीता और लक्ष्मण के साथ पंचक्रोशी की यात्रा की। यह भी माना जाता है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने द्रौपदी के साथ यह यात्रा की थी।
पंचकोशी परिक्रमा के दौरान विशेष महत्व है, उन्मत्त भैरव का
प्रमुख उन्मत्त भैरव का मंदिर पंचक्रोशी मार्ग के देऊरा गांव में स्थित है। काशी के पंचकोशी मार्ग, देऊरा गांव में स्थित उन्मत्त भैरवनाथ का शरीर सिन्धुर रंग का है। इन भैरव की दिशा पश्चिम है। विशाल दूधिया तालाब से सट्टा हुआ इनका मंदिर है। तलाब पर ही सैकड़ों साल पुराना एक विशाल पीपल का वृक्ष आज भी मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर्व के पंचकोशी परिक्रमा यात्रा के दौरान इनकी पूजा, प्रार्थना या अर्चना करने से व्यक्ति के अंदर के सभी तरह के नकारात्मक विचार या भाव तिरोहित हो जाते हैं और वह सुखी एवं शांतिपूर्वक जीवन यापन करता है। इनकी पूजा करने से नौकरी, प्रमोशन, धन आदि की प्राप्ति होती है और साथ ही घर परिवार में प्रसन्नता का वातावरण निर्मित होता है।लहसुन, प्याज आदि त्यागकर शुद्ध सात्विक रूप से इनकी आराधना करने से ये जल्दी प्रसन्न होते हैं। प्रमुख तौर पर उन्मत्त भैरव मंदिर में विदेशी श्रद्धालुओं का जमघट रहता है।
अस्सी किमी की है पूरी यात्रा
यहां से आखिरी पड़ाव कपिलधारा होता है जहां से माथा टेक भक्त वापस मणिकर्णिका जाते हैं। पूरी यात्रा अस्सी किमी की होती है। इतिहास के पन्ने बयां करते हैं, कि पाँचो पांडवों ने एक दिन में पूरी पंचकोशी परिक्रमा यात्रा को किया था। पंचकोशी मार्ग पर स्थित एक मंदिर में द्रोपति के साथ पांच पांडवों की मूर्ति भी स्थापित है। यह भी कहा जाता है कि यहां के कुंड के अंदर सीढ़ियां भी थी जो अब विलुप्त हो गई है। शिवरात्रि के दौरान यहाँ भक्तों का अत्यधिक भीड़ होता है।
प्रत्येक पड़ाव के बीच की दूरी
मणिकर्णिका से कर्दमेश्वर – तीन कोस, कर्दमेश्वर से भीम चंडी – पांच कोस यानि कुल आठ कोस
भीम चंडी से रामेश्वर – सात कोस यानि कुल पन्द्रह कोस
रामेश्वर से शिवपुर – चार कोस यानि कुल उन्नीस कोस, शिवपुर से कपिलधारा – तीन कोस यानि कुल बाइस कोस
कपिलधारा से मणिकर्णिका – तीन कोस यानि कुल पच्चीस कोस
पंचकोशी यात्रा से पहले, की पड़ताल
पंचकोशी यात्रा के दौरान जगह जगह पर सड़क किनारे गिट्टी के चट्टान लगे हुए हैं। जिसके कारण रात्रि के समय पंचकोश परिक्रमा कर रहे श्रद्धालुओं को असुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है। और यह गिट्टी के चट्टान दुर्घटना को भी दावत दे रहे हैं। पंचकोशी परिक्रमा के दाहिने और बाएं तरफ बने हुए पाथवे का निर्माण भी आधा अधूरा देखने को मिला। और सड़क के दोनों तरफ बने हुए पाथवे जर्जर व टूटी फूटी स्थिति में दिखे। भैरवनाथ मंदिर प्रांगण से सटे हुए तालाब पर अवैध तौर पर कब्जा व गंदगी का ढेर देखने को मिला। पंचकोशी परिक्रमा पर स्थित विशाल जलकुंड में स्थित पानी की बात करें तो तालाबों में साफ सफाई की कोई व्यवस्था नहीं दिखी और गंदगी का ढेर लगा हुआ है।