
हजारों की आबादी में एक भी सरकारी शौचालय नहीं
गरीबों के घर में नहीं बन पाया इज्जत घर
लोकसभा विधानसभा चुनाव में मतदान का अधिकार लेकिन मौलिक सुविधाओं से वंचित
औद्योगिक संस्थान और नगर पंचायत के परिसीमन विवाद में पिस रही 30 हजार की आबादी
रेणुकूट/संसद वाणी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में एक स्वच्छ भारत मिशन के तहत बीते 8 वर्षों में आम लोगों में बड़ा बदलाव आया। देश में स्वच्छता की बयार के साथ महिलाओं को खुले में शौच से निजात मिली। लेकिन रेणुकूट शहर की एक बड़ी आबादी सरकार की तमाम योजनाओं से वंचित है। आज भी इस इलाके की महिलाएं, बुजुर्ग बच्चे शौच के लिए घर से बाहर जाने के लिए विवश है। इलाके में सरकारी योजनाओं का बुरा हाल है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश भर में शौचालयों का निर्माण कराकर सरकार ने नया रिकॉर्ड कायम करने का दावा किया तो वहीं 30 हजार की आबादी वाले इस इलाके में एक भी सरकारी शौचालय का निर्माण नहीं हो पाना प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान को मुंह चिढ़ाता नजर आता है। निकाय परिसीमन क्षेत्र से बाहर इस इलाके में ना ही सरकारी सार्वजनिक शौचालय है और ना ही किसी आवास में इज्जत घर। प्रधानमंत्री के तमाम प्रयासों के बाद भी इस इलाके के लोग खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हैं। प्रतिदिन सैकड़ों घरों की महिलाएं समीप के वार्डों में बने सार्वजनिक शौचालय या औद्योगिक संस्थान के कर्मचारियों के बने सामूहिक शौचालय सहित आसपास के जंगलों में जाते हुए देखी जा सकती हैं। नगर की सीमा परिक्षेत्र में आने वाले वाराणसी शक्तिनगर मुख्यमार्ग के किनारे करीब डेढ़ किलो मीटर के लंबे क्षेत्र में फैले दुकानदार विश्वकर्मा नगर बाल्मीकि नगर दर्जी मार्केट ट्रांसपोर्ट नगर डॉक्टर विनोद राय की गली सहित शिवापार्क मोहल्ले में निवास करने वाले लोगों का जीवन दुश्वारियों से भरा है। इलाके में जो लोग सक्षम हैं उनके यहां तो शौचालय बने हुए हैं। लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं जो पर्याप्त जमीन और धन के अभाव में अपने घरों में शौचालय का निर्माण नहीं करा पाए हैं। जिस कारण उन्हें अपने घर से शौच जाने के लिए करीब एक डेढ़ किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ती है। मजे की बात है कि 30 हजार की आबादी वाले इस क्षेत्र के निवासी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अपनी भागीदारी तय कर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार तो रखते हैं लेकिन स्थानीय प्रशासन की नाकाम पहल से अपने मौलिक अधिकारों से बहुत दूर नजर आते हैं। नगर पंचायत और औद्योगिक संस्थान के उपजे सीमा विवाद में वर्षों से हजारों लोगों का जीवन नारकीय बना हुआ है। नगर पंचायत प्रशासन परिसीमन क्षेत्र से बाहर होने का हवाला देकर नागरिकों के प्रति जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ता नजर आता है तो वहीं सीएसआर के तहत जिले के सुदूर अंचलों में कागजों पर विकास की गंगा बहाने वाले औद्योगिक संस्थान की कार्यप्रणाली चिराग तले अंधेरा वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है। नगर में निवास करने वाले लोगों को वर्षों से प्रदूषण परोसने वाले संस्थान यहां के निवासियों के साथ सौतेला व्यवहार करते रहे हैं। उच्च न्यायालय में हलफनामा देकर फैक्टरी के अगल-बगल बसे निवासियों को समुचित मौलिक सुविधाओं को देने का दावा करने वाले औद्योगिक संस्थान इस इलाके में एक भी जनहित के कार्य नहीं करते। जबकि नगर से 30-40 किलोमीटर दूर सीएसआर के तहत लाखों करोड़ों खर्च कर विकास का दावा उनके सामाजिक जिम्मेदारियों पर सवाल खड़े करती है। मुर्धवा के पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य व समाजसेवी अजय राय का कहना है कि प्रधानमंत्री का सपना है कि देश के किसी भी घर की महिलाएं शौच के लिए बाहर नहीं जाएं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि नगर की बड़ी संख्या में महिलाएं शौच के लिए अपने घरों से बाहर अब भी जा रही हैं। औद्योगिक संस्थानों के अवरोध उत्पन्न करने से उपजे सीमा विवाद में हजारों की आबादी संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों से वंचित है। जिसका शीघ्र शासन स्तर पर हल निकाल जाये ताकि हजारों नागरिकों के संवैधानिक हितों की रक्षा हो सके।