
सद्गुरु कबीर साहेब ६२४ वा प्राकट्य महोत्सव
वाराणसी/संसद वाणी
सद्गुरु कबीर प्राकट्य धाम लहरतारा तालाब एवं स्मारक विकास समिति द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय सद्गुरु कबीर प्राकट्य महोत्सव के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में संत श्री टकसार दस जी के चलो गुरु के द्वारे प्रस्तुति भजन से प्रारंभ हुआ. उसके पश्चात् छत्तीसगढ़ से आये महंत परमेश्वर दास जी ने अपने संबोधन में कहा की सद्गुरु कबीर साहेब का ज्ञान वो गहना है जिसे कोई चुरा नहीं सकता यह दिनों दिन बढ़ता ही जाता है . अगर माता पिता ने अपने बच्चों को संस्कार रूपी धन दिया है तो उसे अन्य दौलत की जरुरत नहीं होती है. पूत कपूत तो क्या धन संचय , पूत सपूत तो क्या धन संचय. अर्थात ज्ञान रूपी धन से बढ़कर कोई धन नहीं है संसार में. उसके पश्चात् भागलपुर से आये महंत सुनील साहेब शास्त्री ने अपना विचार रखा की कबीर साहेब प्राकट्य धाम सभी कबीरपंथियों के लिए पवन तीर्थ स्थल हैं जहाँ कबीर साहेब प्रकट हुए और साहेब ने अपने सन्देश में कहा की जिव दया और आतम पूजा सद्गुरु भक्ति देव नहीं दूजा. चीटी से लेकर हाथी तक सबके अन्दर परमात्मा का निवास है . सब घाट मेरी सैंया सुनी सेज न कोय, बलिहारी वह घाट की जा घाट परगट होए. इसलिए सबसे प्रेम करें . पूज्य श्री धर्माधिकारी साहेब ने विचार प्रकट करते हुए कहा की करहु विचार सब दुःख जाये अर्थात जीवन में सुख थोडा है और दुःख बहुत है इसलिए सबसे पहले अपने जीवन को पढो तो साहेब को अपने आप समझ जाओगे कबीर कहे कमल से दो बात सिख ले कर साहेब को बंदगी बुखे को कछु देय . मनिष्य को चाहिए की अपना अहंकार को त्यागकर अच्छा जीवन जीने का संकल्प लें. जब मैं था तब गुरु नहीं अब गुरु है मैं नाहीं . कबीर का मार्ग प्रेम का तामें दो न समाये . मैं को मिटाकर आनंद का अनुभव करे साहेब ने कहा की अब हम आनंद के घर पायो , आनंद को प्राप्त करने के लिए त्याग करना पड़ता है साहेब ने कहा की त्याग तो ऐसा कीजिये सब कुछ एक ही बार , सब प्रभु का मेरा नहीं निश्चय किया विचार . सत्र के अंत में त्याग वैराग्य परम पूज्य हजूर अर्धनाम साहेब आचार्य कबीरपंथ ने अपने संबोधन में कहा की कबीर साहेब ऐसे महापुरुष थे जिसने अपने जीवनकाल में मसि कागज कभी नहीं छुआ . लेकिन बड़े बड़े यूनिवर्सिटी में उनकी वाणियों पर रिसर्च होता है लेकिन कबीर साहेब का ज्ञान को समझने के लिए रिसर्च की जरुरत नहीं होती , गुरु की कृपा की जरुरत होती है बिना गुरु कृपा के कबीर साहेब की वाणी कोई समझ नहीं सकता . किसी ने कबीर साहेब से प्रश्न किया की आप कौन हैं तब साहेब ने उतर दिया हिन्दू कहे तो मैं नहीं मुसलमान भी नाहीं , पांच तत्त्व के पुतला गैबी खेले माहीं. मैं इन सबसे न्यारा हूँ . आगे उन्हों ने कहा की गुरु सैम दाता कोई नहीं सब जग मंगन हारा अर्थात सद्गुरु के समान कोई दाता नहीं वो तो अमर लोक की संपदा देने के लिए तत्पर हैं पर कोई प्राप्त करने के योग्य नहीं. गुरु समान दाता नहीं याचक शिष्य समान . सद्गुरु कबीर साहेब इस कशी लहरतारा में प्रकट होकर ज्ञान भक्ति की शिक्षा दी . झीस समय साहेब आये उस समय समाज में जाती पांति उंच नीच का बड़ा बोलबाला था , पाखण्ड का बोलबाला था उनपर कदा प्रहार करते हुए ललकारकर कहा की दिन को रोजा रहत है रात हनत है गाय , वह खून वह बंदगी क्या कर ख़ुशी खुदाय . हिन्दू के लिए कहा की के करि देवी देवा, काटि काटि जिव देइया. जो तोहरा है साँचा देवा, खेत चरत क्यों न लेइया जी . अंत में सद्गुरु कबीर प्राकट्य धाम के संस्थापक पंथ श्री हजूर उदितनाम साहेब पुरे कबीर पंथ के लिए यह कल्प वृक्ष रूपी धाम का निर्माण किया जो आज हम सब उनकी शीतल छाया में शांति का अनुभव कर रहे हैं. इस अवसर पर अनेक संत महापुरुष भक्त हंस जन हजारों की संख्या में मौजूद थे . मॉरिशस से भक्त श्री सुरेश बैचु और उनकी पत्नी अनुसुइया बैचु अमेरिका से चिमन भाई भी सम्मिलित हुए. उनका संस्था की ओर से स्वागत व सम्मान किया गया, पूरा परिसर कबीर साहेब के वाणी , साखी, शब्दों, भजनों से गुंजायेमान रहा, सत्यनाम की धून से पूरा पंडाल आनंदित रहा. महोत्सव में आये सभी भक्त श्रधालू के भंडारा लंगर संस्था की ओर किया गया है. हजारों की संख्या में भक्त परिसर में मौजूद हैं सभी उलास से आनंदित व प्रश्न हैं. संतो की आरती के साथ आज का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।