
चरागे ए सुबह हूं बेशक बुझा हुआ हूं मैं न भूल तेरे लिये रातभर जला हूं मैं हूं इश्क माना कि मुद्दत से मद्दआ हूं मैं न हल हो मेरा नहीं ऐसा मसअला हूं मैं
कर चले हम फ़िदा जान वतन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों का तराना गाते आजादी के दीवाने हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गये उसी वतन के लोग खुशनुमा मौसम हुआ तो उनकी शहादत को भूलगये!23मार्च1931 को आजादी के दीवानो को फांसी पर लटका दिया गया। माये रंग दे बसन्ती चोला का तराना अब लोगों के लिये पुराना हो चला है।देश भूल गया भगत सिंह रोशन सिंह राजेंद्र लाहिड़ी के बलिदान को जिसने अपनी कुर्बानी देकर आजाद कराया हिन्दुस्तान को?
शहीदों के मजारों पर लगेंगा हर बरस मेला,।
,वतन पर मरनेवालो का यही बाकी निशा होगा!
सब कल की बात होकर रह गया आज शहादत दिवस पर न तो कोई सरकारी श्रद्धांजलि सभा हो रही है !न तो इस तरह का कोई कार्यक्रम न कोई सरकारी फरमान न कोई ऐसा बना बिधान की आज की जेनरेशन के साथ ही आने वाली नस्लों को याद रहे इन रण बांकुरों का बलिदान!सब कुछ महज आजादी के सात दशक में ही सियासी धमक के आवरण में बलिदानियों के रण को भुला दिया गया।आज तस्बीरे उनकी दफ्तरों मे सजाई जा रही जिनके चलते देश के रणबांकुरों को शहादत देनी पड़ी! साबरमति के लाल ने कर दिया कमाल,!भगत सिंह को अंग्रेजो ने कर दिया हलाल!अंग्रेजो के चाटुकार हिन्दुस्तान की आन-बान शान स्वाभीमान के रक्षकों को अंग्रेजी भक्षको के हवाले कर स्वयंभू राष्ट्रपिता का तमगा हासिल कर लिये।चाटुकार इतिहासकारो ने सुभाष चन्द्र बोस चन्द्रशेखर आजाद भगत सिंह रोशन सिंह राजेन्द्र लाहिड़ी अशफाकुल्लाह खान जैसे परम बीर महान सेनानी धर्म रक्षक राष्ट्र गौरव भारत की शान को आतंकवादी तथा युद्ध अपराधी तक लिख डाले !आज इतिहास बदल रहा है।आजादी की सच्चाई देश की बर्वादी नौजवानों की शहादत चाटुकारो की कहानी लोगों की जबानी सुनी जा रही है।मिल गयी आजादी बिना खड्ग बिना ढाल जैसी चाटुकारिता पूर्ण रचना प्रपचना की द्वेश पूर्ण इबारत बनकर रणबांकुरों की शहादत का मजाक उड़ाती है। जिस देश की आजादी के लिये 1857से लेकर 11942तक लाखों लाख बलिदान हो गये।उस देश के इतिहास लिखने वालों की दुर्बल मानसिकता ने शहादत को आहत कर दिया!आज जब देश खुशहाल हैं धन सम्पदा सुख सुविधा से मालो माल है लोकतन्त्र के मेला में शुरु हो गया सियासी खेला है। रणबांकुरों की शहादत
की कहीं हिफाजत नहीं! बल्कि उस पर भी सियासी नजाकत शुरु हो गयी है! 23मार्च सिंह शावकों के बलिदान का दिन है। मां भारती के अमर सपूतो के गौरव साहस समर्पण का दिन है?।देश के लिये सब कुछ समर्पण कर जीवन अर्पण कर देने वाले शहीदों के समापन की तिथि है।लेकिन न कहीं कोई कार्यक्रम न कोई सरकारी आदेश! जो कल था वहीं आज भी है परिवेश!समय की धारा में सब कुछ अस्तित्व बिहीन हो चला है!आने वाली नस्लें भूल जायेगी शहीद शहादत!आजादी जैसा शब्द!गिरावट मिलावटके इस दौर में देश के लिये कुर्बान होने वाले रण बांकुरों की आत्मा कराहती होगी! शहादत का मजाक होते देखकर रोती होगी!,सोचती होगी क्या यह वही मां भारती का आंगन है? जहां हम गोलियों से खेलते खेलते शहीद हो गये थे?शहादत दिवस पर मां भारती के अमर सपूतों को शत् शत् नमन भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
तौफ़ीक़ खान के कलम से
संसद वाणी/वाराणसी